नई दिल्ली \ लखनऊ : सूत्रों से खबर आई है, पर इस बार हवा में नहीं, सिस्टम में गर्मी है। योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्रिमंडल फेरबदल की हलचल जोरों पर है। अंदरखाने की खबरों की मानें तो डिप्टी सीएम बृजेश पाठक समेत स्वतंत्र देव सिंह, दयाशंकर सिंह, सतीश शर्मा, सुरेश खन्ना, सूर्य प्रताप शाही सहित धर्मपाल सिंह का जाना लगभग तय है। गणेश परिक्रमा शुरू भी कर दी है माननीयों ने ,और इसकी वजह सिर्फ ‘कार्य निष्ठा’ नहीं — इसके पीछे हैं आगामी विधान सभा चुनाव की फाउंडेशन प्लानिंग, और जातीय+क्षेत्रीय समीकरणों का गणित।
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फेरबदल क्यों ज़रूरी हो गया है?
प्रदर्शन आधारित छंटनी:
सूत्रों के अनुसार, भाजपा हाईकमान ने यूपी के सभी मंत्रियों से प्रदर्शन रिपोर्ट कार्ड मंगवाया है। जिन मंत्रियों की सार्वजनिक पकड़ कमजोर, लोकप्रियता में गिरावट, या विभागीय असंतोष सामने आया है — उन्हें ‘मित्रता बनी रहे, पर मंत्रालय चले जाए’ वाले फॉर्मूले पर रिटायर किया जा सकता है।
जातिगत संतुलन की कवायद:
भाजपा को यूपी में अगले विधानसभा चुनाव में सीटें दोहराने के लिए नव-पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलित समुदायों में बेहतर संतुलन बनाना होगा। ऐसे में जातीय समीकरण बिगाड़ने वाले पुराने चेहरों की जगह “नए और प्रभावी जातीय प्रतिनिधियों” को लाना ज़रूरी हो गया है।
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की मजबूती:
कुछ क्षेत्रों से लगातार शिकायतें आ रही थीं कि स्थानीय विधायक या मंत्री “ग़ायब विभाग” जैसे हो गए हैं। आगामी फेरबदल में पूर्वांचल, बुंदेलखंड और तराई क्षेत्रों से संतुलन बनाने के लिए लोकप्रिय चेहरों को प्रमोट किया जा सकता है।
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किसकी कुर्सी डगमग?
अब इस पर सभी की नज़रें टिकी हैं कि अगर बृजेश पाठक को हटाया गया तो पार्टी यह राजनीतिक जोखिम क्यों ले रही है?
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क्या योगी-हाईकमान ट्यूनिंग में कुछ अनकहे संदेश हैं?
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या फिर यह बदलाव सिर्फ छवि री-ब्रांडिंग के लिए किया जा रहा है?
नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के उच्च पदाधिकारी ने कहा, ‘‘हालांकि भाजपा में निर्णय का अंदाज़ ऐसा होता है कि “बिना बताए बदलाव करो, और बदलाव के बाद भी न बताओ क्यों किया।” यही वजह है कि नाम सार्वजनिक नहीं किए गए, पर जिन मंत्रियों की चर्चा है, उनमें एक डिप्टी सीएम समेत 6 मंत्री शामिल बताए जा रहे हैं। केशव मौर्या मजबूत दशा में है ऐसे में पाठक ही वो डिप्टी सीएम हैं। ”
आगे की रणनीति क्या हो सकती है?
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विधानसभा फोकस: मंत्रालय से हटाकर संगठन या आगामी विधान सभा की चुनावी ज़िम्मेदारी दी जा सकती है।
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मिशन 2027 की बुनियाद:
भाजपा की आदत है — चुनावों के पहले ही बदलाव करना और “गुड गवर्नेंस” का नैरेटिव सेट करना। मौजूदा फेरबदल, 2027 के विधानसभा चुनावों की दिशा भी तय करेगा। -
युवाओं की एंट्री: पार्टी के सूत्रों के अनुसार, नए मंत्रियों में 40 से कम उम्र के चेहरों को तवज्जो दी जाएगी — ताकि “नई सोच, नया जोश, और नया टारगेट” जैसी थीम को मजबूत किया जा सके।
सियासी पिच पर नया बॉलिंग अटैक?
फेरबदल अगर होता है तो यह केवल “चेहरे बदलना” नहीं होगा — यह होगा “भविष्य की पॉलिटिकल टीम इंडिया” तैयार करना।
बृजेश पाठक जैसे बड़े चेहरे का हटना पार्टी के भीतर कई संदेश देगा — कुछ सार्थक, कुछ सावधान करने वाले। लेकिन भाजपा की शैली यही कहती है:
“जो दिखे वो होता नहीं, और जो हो, वो दिखता नहीं।”